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    संस्थान के बारे में

    निपवेड देहरादून का इतिहास

    शिक्षा, प्रशिक्षण, कार्य एवं सांस्कृतिक तथा राजनैतिक जीवन में सहभागिता के समान अवसर प्रदान करने के लिए भारत सरकार, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों ने अनेक सकारात्मक कार्य योजनाएं एवं कार्यक्रम आरंभ किए हैं। सरकार ने दिव्यांगजनों की बेहतर सुरक्षा और उनके अधिकारों की बढ़ोत्तरी सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी कानूनी रूपरेखा भी बनाई है। विशिष्ट शिक्षा अध्यापकों और पुनर्वास कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की संस्थागत व्यवस्था, जो सात राष्ट्रीय संस्थानों के रूप में की गई है, अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मानव संसाधन विकास गतिविधियां आयोजित करने के अतिरिक्त ये राष्ट्रीय संस्थान दिव्यांगता संबंधी मुद्दों पर प्रमुख शोध संस्थान हैं। इन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिव्यांगजनों हेतु सहभागिता के समान अवसर प्रदान करने के लिए अनेक तकनीकों और प्रौद्योगिकी का योगदान दिया है। राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान, 116 राजपुर मार्ग, देहरादून, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन कार्यरत सात राष्ट्रीय संस्थानों में से एक है। यह संस्थान वर्ष 1943 में युद्ध में दृष्टिहीन सैनिकों हेतु सेंट इंस्टन छात्रावास के रूप में अस्तित्व में आया, जो द्वितीय विश्व युद्ध में दृष्टिहीन हुए सैनिकों और नाविकों को मूलभूत पुनर्वास सेवाएं प्रदान करता था। वर्ष 1950 में भारत सरकार ने सेंट इंस्टन छात्रावास को अपने नियंत्रण में लिया और दृष्टि दिव्यांगजनों के पुनर्वास हेतु व्यापक स्तर पर सेवाएं विकसित करने का उत्तरदायित्व शिक्षा मंत्रालय को सौंपा। तत्पश्चात दृष्टिहीनों हेतु सेवाओं का उल्लेखनीय विस्तार हुआ। इसी वर्ष सरकार ने कार्य के क्षेत्र में दृष्टिहीन सैनिकों एवं अन्य व्यक्तियों के एकीकरण के लिए प्रौढ़ान्ध प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की।

    इसके पश्चात्—
    1951 में ” केन्द्रीय ब्रेल प्रेस (सी.बी.पी.)”,
    1952 में “ब्रेल उपकरण निर्माण कार्यशाला “,
    1954 में “आश्रयी कार्यशाला”,
    1957 में “प्रौढ़ान्ध महिलाओं हेतु प्रशिक्षण केन्द्र”,
    1959 में “दृष्टिबाधितार्थ आदर्श विद्यालय”,
    1963 में “राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ पुस्तकालय की स्थापना की गई।

    वर्ष 1967 में सभी इकाईयों के एकीकरण के पश्चात् सरकार ने राष्ट्रीय दृष्टिहीनार्थ केन्द्र (एन.सी.बी.) की स्थापना की। इस केन्द्र को वर्ष 1979 में राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान के रूप में पुनः समुन्नत किया गया और अन्ततः वर्ष 1982 में इसका संस्था पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत पंजीकरण कराया गया और इसे स्वायत्त निकाय का दर्जा प्राप्त हुआ। निपवेड निःसंदेह दृष्टिदिव्यांगों को पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने हेतु सेवा के क्षेत्र में 78 वर्ष पूर्ण करने वाला देश का एक सम्मानित संस्थान है।

    संस्थान 43 एकड़ भूमि में स्थित है जो लगभग 4,500 मीटर लंबी चारदीवारी और लगभग 500 मीटर लंबी तार- बाड़ और चारदीवारी से घिरा हुआ है। संस्थान में 99 आवासीय भवन, 10 गैर- आवासीय भवन, लगभग 30,000 वर्ग मीटर के 4 बड़े छात्रावास हैं। इसके अलावा संस्थान के परिसर में 11,700 वर्ग मीटर सड़कें, जल आपूर्ति लाइनें, सीवरेज लाइनें, विद्युत आपूर्ति लाइनें, विद्युत उप-स्टेशन आदि हैं।.

    भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2015 में अपने मन की बात कार्यक्रम में विकलांग के स्थान पर “दिव्यांगजन” शब्द का उपयोग करने का सुझाव दिया। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग ने दिव्यांगजन शब्द को अपने मूल में शामिल किया। तदनुसार इसके अंतर्गत कार्यरत सभी राष्ट्रीय संस्थानों के नामकरण में परिवर्तन किया गया और उनके वास्तविक नामों के साथ दिव्यांगजन शब्द जोड़ा गया। तदनुसार, 2016 में संस्थान का नाम भी राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान (एनआईवीएच) से बदलकर राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (दिव्यांगजन) (निपवेड) कर दिया गया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी क्योंकि विकलांगजन के बजाय दिव्यांगजन का उपयोग निश्चित रूप से दृष्टिदिव्यांग व्यक्तियों
    के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव लाना था।

    शिक्षा, प्रशिक्षण, कार्य और सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक जीवन में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार, राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनों ने कई सकारात्मक पहल, योजनाएँ और कार्यक्रम शुरू किए हैं। भारत सरकार ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा और संवर्द्धन सुनिश्चित करने हेतु प्रभावशाली कानूनी ढांचा भी स्थापित किया है। विशेष शिक्षा शिक्षकों और पुनर्वास कर्मियों के प्रशिक्षण के लिए नौ राष्ट्रीय संस्थानों के रूप में जो संस्थागत व्यवस्था बनाई गई है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानव संसाधन विकास गतिविधियों के साथ-साथ ये राष्ट्रीय संस्थान विकलांगता मुद्दों पर प्रमुख शोध निकाय भी हैं। इन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के लिए समान अवसरों को सुगम बनाने वाली अनेक तकनीकें और प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं।

    नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द एम्पॉवरमेंट ऑफ पर्सन्स विद विजुअल डिसैबिलिटीज (दिव्यांगजन) (NIEPVD), 116, राजपुर रोड, देहरादून, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, विकलांगता विभाग (DEPwDs), भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत नौ राष्ट्रीय संस्थानों में से एक है। इसे 1943 में विश्व युद्ध II में अंधे हुए सैनिकों और नाविकों को पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने हेतु सेन्ट डनस्टन हॉस्टल फॉर द वॉर ब्लाइंडेड के रूप में स्थापित किया गया था। 1950 में भारत सरकार ने सेन्ट डनस्टन हॉस्टल का नियंत्रण शिक्षा मंत्रालय को सौंपकर दृष्टिहीन व्यक्तियों के व्यापक पुनर्वास सेवाओं के विकास की जिम्मेदारी दी। तत्पश्चात्, दृष्टिहीनों के लिए सेवाओं का असाधारण विस्तार हुआ। उसी वर्ष वयस्क दृष्टिहीनों के पुनःसंस्करण के लिए प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई। 1951 में सेंट्रल ब्रेल प्रेस (CBP); 1952 में ब्रेल उपकरण निर्माण कार्यशाला (MBA); 1954 में शेल्टर्ड वर्कशॉप; 1957 में वयस्क दृष्टिहीन स्त्रियों के प्रशिक्षण केंद्र (TCAB); 1959 में दृष्टिहीनों के लिए मॉडल स्कूल (MSVH); और 1963 में प्रिंट विकलांगों के लिए राष्ट्रीय पुस्तकालय (NLPH) की स्थापना की गई।

    इन सभी इकाइयों के एकीकरण पर 1967 में नेशनल सेंटर फॉर द ब्लाइंड (NCB) स्थापित किया गया। 1979 में इसे नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द विजुअली हैंडीकैप्ड के रूप में अपग्रेड किया गया और अक्टूबर 1982 में इसे सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत कर एक स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया गया। NIEPVD निस्संदेह देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है जिसने दृष्टिहीन व्यक्तियों को 78 वर्षों से पुनर्वास सेवाएँ प्रदान की हैं।

    संस्थान 43 एकड़ में फैले क्षेत्र में स्थित है, जिसे लगभग 4,500 मीटर लंबी बाहरी दीवार और लगभग 500 मीटर लंबी आंतरिक बाड़ से घेरा गया है। संस्थान में 99 आवासीय क्वार्टर्स (बारक प्रकार के क्वार्टर्स सहित), 09 गैर-आवासीय भवन, और लगभग 30,000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के चार बड़े होस्टल हैं। इसके अतिरिक्त, संस्थान के परिसरों में 11,700 वर्ग मीटर सड़कों, जल आपूर्ति लाइनों, सीवरेज लाइनों, विद्युत आपूर्ति लाइनों, विद्युत उपकेंद्रों आदि का नेटवर्क है।

    2015 में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के “मन की बात” कार्यक्रम में “विकलांग” शब्द की जगह “दिव्यांगजन” शब्द प्रयोग करने के सुझाव पर, विकलांगता विभाग ने अपने मूल नाम में “दिव्यांगजन” शब्द जोड़ लिया। इसके अनुरूप सभी कार्यरत राष्ट्रीय संस्थानों के नाम बदले गए। 2016 में संस्थान का नाम नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द विजुअली हैंडीकैप्ड (NIVH) से बदलकर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द एम्पॉवरमेंट ऑफ पर्सन्स विद विजुअल डिसैबिलिटीज (दिव्यांगजन) (NIEPVD) कर दिया गया। इस बदलाव ने समाज में दृष्टिहीन व्यक्तियों के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

    1.1 संस्थान की क्षेत्रीय संरचना

     क्षेत्रीय केन्द्र, चेन्नई
     सी.आर.सी. सुन्दरनगर
     सी.आर.सी. गोरखपुर

    रा.दृ.दि.स.सं., क्षेत्रीय केन्द्र, चेन्नई

    संस्थान का क्षेत्रीय केन्द्र दक्षिणी क्षेत्र की दृष्टिबाधित जनसंख्या की प्रशिक्षण एवं पुनर्वास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्ष 1988 में पूनामल्ली,चेन्नई में स्थापित किया गया। यह केन्द्र शहरी के साथ-साथ ग्रामीण दृष्टिदिव्यांग व्यक्तियों हेतु व्यवसायिक प्रशिक्षण एवं रोजगार के नये क्षेत्रों का पता लगाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह केन्द्र कार्य अनुसंधान सहित विभिन्न प्रभावी मुद्दों पर भी शोध का आयोजन कर रहा है।

     निपवेड क्षेत्रीय केन्द्र, पूनामल्ली, चेन्नई की कुल भूमि 24,300 वर्गमीटर (6 एकड़) है।
     इसका प्रशिक्षण खंड 761.34 वर्ग मीटर
     प्रशासनिक खंड 388.12 वर्ग मीटर
     छात्रावास खंड एवं भोजनालय 1000.47 वर्ग मीटर
     महिला छात्रावास खंड 715 वर्ग मीटर का है।

    कंपोजिट क्षेत्रीय केंद्र (CRC) – सुंदरनगर (हिमाचल प्रदेश) एवं गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

    संस्थान सुंदरनगर (2001) एवं गोरखपुर (2018) में स्थापित कंपोजिट क्षेत्रीय केंद्रों के समन्वय एवं पर्यवेक्षण की भूमिका निभाता है। इन केंद्रों का उद्देश्य दिव्यांगजन के लिए कौशल विकास, पुनर्वास एवं रोजगार सुनिश्चित करना है।

    1.2 उद्देश्य और लक्ष्य

    संस्थान की नियमावली में दर्शाये गये लक्ष्य और उद्देश्य इस प्रकार हैं:

    क. अन्य गैर-सरकारी संगठनों और अनुसंधान संगठनों, जिनमें विश्वविद्यालय भी शामिल हैं, के सहयोग से दृष्टिदिव्यांगों की शिक्षा एवं पुनर्वास के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य करना, अनुसंधान कार्यों का प्रायोजन, समन्वय तथा सहायता उपलब्ध कराना।
    ख. बायोमेडिकल अभियांत्रिकी के क्षेत्र में शोध कार्यों का आयोजन, प्रायोजन, समन्वयन करना अथवा सहायता उपलब्ध कराना, जिससे विशेष उपकरणों का प्रभावकारी मूल्यांकन अथवा विशेष उपकरणों /यंत्रों का प्रभावी मूल्यांकन अथवा उपयुक्त शल्य चिकित्सा अथवा चिकित्सा
    प्रक्रिया अथवा नवीन विशेष उपकरणों/ यंत्रों का विकास।
    ग. प्रशिक्षणार्थियों एवं अध्यापकों, सेवायोजन अधिकारियों, मनोवैज्ञानिकों, व्यवसायिक परामर्शदाताओं तथा अन्य ऐसे कार्मिकों, जिन्हें संस्थान स्वीकार्य एवं आवश्यक समझता है, सहित विभिन्न विशेषज्ञों का प्रशिक्षण आयोजन अथवा प्रायोजित करना।
    घ. दृष्टिबाधितों की शिक्षा, पुनर्वास अथवा रोजगार विकसित करने के लिए किसी या सभी विकसित उपकरणों एवं आद्यरूपों के वितरण, उत्पादन एवं रियायती मूल्यों पर उपलब्ध कराने को बढ़ावा देना।

    संस्थान में निम्नलिखित विभाग एवं इकाइयाँ कार्यरत हैं:

    1. विशिष्ट शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग
    2. नैदानिक एवं पुनर्वास मनोविज्ञान एवं अनुसंधान विभाग
    3. दृष्टि बाधितों के लिए आर्दश विद्यालय
    4. प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं अनुसंधान विभाग
    5. राष्ट्रीय पुनर्वास परीक्षा बोर्ड (एनबीईआर)
    6. कौशल विकास एवं आर्थिक सशक्तिकरण विभाग
    7. प्रकाशन, सम्प्रेषण एवं अनुसंधान विभाग
    8. राष्ट्रीय सुगम्य पुस्तकालय
    9. क्रॉस डिसेबिलिटी शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र